8 अगस्त सन् 1940 को, वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने राष्ट्रवादिओं को एक प्रस्ताव दिया। जो की अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना गया। यह प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को लेकर पूछे गए सवाल के जबाव में लाया गया था| इस प्रस्ताव में मुस्लिमों के हितों का उल्लेख किया गया था। इसमें कहा गया था की अल्पसंख्यकोँ की स्वीकृति के बिना, सरकार कोई भी संवैधानिक परिवर्तन लागू नहीं कर सकती है।
अगस्त प्रस्ताव के प्रावधान
(i) भारत के लिये डोमिनियम स्टेट्स मुख्य लक्ष्य।
(ii) भारतीयों को सम्मिलित कर युद्ध सलाहकार परिषद की स्थापना।
(iii) युद्ध
के उपरांत संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जिसमें मुख्यतया भारतीय ही अपनी
सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक धारणाओं के अनुरूप संविधान की रूपरेखा
सुनिश्चित करेंगें। संविधान ऐसा होगा कि रक्षा, अल्पसंख्यकों के हित,
राज्यों से संधियाँ तथा अखिल भारतीय सेवाएँ आदि मुद्दों पर भारतीयों के
अधिकार का पूर्ण ध्यान रखा जाएगा।
(iv) अल्पसंख्यकों को आवश्वस्त किया गया कि सरकार ऐसी किसी संस्था को शासन नहीं सौंपेगी, जिसके विरूद्ध सशक्त मत हो।
(v) वायसराय की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया जाएगा।
कांग्रेस द्वारा अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया गया। नेहरु जी ने कहा डोमिनियम स्टेट्स का मुद्दा पहले ही आप्रासंगिक हो चुका है। गांधी जी ने घोषणा की "अगस्त प्रस्ताव के रूप में सरकार ने जो घोषणा की है उनसे राष्ट्रवादी तथा उपनिवेश सरकार के बीच खाई और चौड़ी हो गई है।
यह प्रस्ताव मुस्लिम लीग द्वारा भी अस्वीकृत कर दिया गया, क्योंकि लीग द्वार उठाई गई पृथक पाकिस्तान की मांग इसमें स्पष्ट नहीं थी। हालांकि लीग द्वारा अल्पसंख्यको के संबंध में दे गए आश्वासन को का स्वागत किया गया।
इन सब के बावजूद यह ब्रिटिश सरकार द्वारा पहली बार भारतीय द्वारा स्वयं संविधान निर्माण थे तर्क को इसमें स्वीकृत मिली थी।
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